गजल़
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*" पुरणि याद "*
भुलांणा- लाख जतन- जबबि कार,
झड़ि कै कूंणां बैठीं रंदीं-पुरणि याद।।
भलु-भलु खैंण्यूंच- नैं जमना भोरऽ,
कुजड़ि-क्यजि खुज्यंदीं-पुरणि याद।।
खै- पेकि बि- न पेट-न ज्यू भरिण्यूं,
बतै नि पांदि-क्य चंदीं- पुरणि याद।।
पुरणि याद-जण्ण-सुण्णौं पुरणु चैंद,
ज्यू भितर क्य-२ छुपंदीं-पुरणि याद।।
अप्णौं सम्ड़ि त-चुप रंदीं-पुरणि याद,
पर पिछनैं नख्रा दिखंदीं-पुरणि याद।।
'दीन' पुछणदौं आकर-काकर द्यखद,
तब ? कनम- रुसै जंदीं- पुरणि याद।।
@ दीनदयाल बन्दूणी 'दीन'
दिल्ली, बटि..
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