उम्मीद की एक किरण बाकी*****Hindi Poetry wrote byAtul Shaili

 


उम्मीद की एक किरण बाकी

शिथिल होकर रक्त सभी
की धमनियों में जम गया या
किसी में कुछ सांस बाकी है
क्या क्षीण होकर बिखर गया
साहस सभी का या किसी में
उम्मीद की एक किरण आज भी है
सब गर्जने बाले मेघ थे या
किसी में जल बुंन्दे आज भी है
फिर गिरकर सम्भलना सीखों
सीनों में दम भरो अभी
मंजिलें निकट नहीं शेष समर
जीवन का अभी काफी है
आपत्ति राम पर भी आयीं थी।
गर्जनें मेघनाथ की भी छायी थी
पलभर की हार से ना
मन इतना उदास करो
लहरें ओर भी आयेंगी
बस‌ लहरों का इंतजार करो
राणाप्रताप की भाँति पुनः
मन का चेतक तैयार करो
जागो- जागो- जागो
पुनः नव प्रयास करो
जीवन है ये जीवनभर
प्रयासरत बनें रहो कल
फिर सूरज नव किरणें आयेंगी
देह में नयी स्फूर्ति लायेगी
सिनों में दम भरों
जो द्वंद्व है मस्तिष्क में उसे
चाणक्य की भाँति साकार करो
जीवन नाम है सघर्ष का
सदैव सघर्षरत बनें रहो ||

©® अतुल शैली

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