गढ़वाली लेख लक लक डाली सिनक सी पात ****Garhwali article written by Hari Lakheda,

 


गढ़वाली लेख

लक लक डाली सिनक सी पात ।
डाली जतना लंबी और पतली हूंद वे क पत्ता झाड़ू क सींक क तरां पातल हूंदन, जन चीड़ क डालु।
सूता दा भी यनि छे । प्राइमरी स्कूल म म्यार सीनियर छे! स्कूल दगडि जांद छे गाँव सबि लड़का ! लड़क्यूं तै पढाणौ कु रिवाज नि छे तब!
रस्ता मा पाणी क द्वी प्राकृतिक श्रोत छे ।
स्कूल डेढ़ द्वी मील की चढै! दादा पैलि पाणी म छक्कीक पाणी पींदु और दुसर पाणी आंद तक पुटक पिचकैक गिच्चैक रस्ता पाणी भैर फिंकणै रंदु । दुसर पाणी आंद आंद पेट ख़ाली । फिर छक्कीक पाणी पींदु और स्कूल आंद आंद पुटक पिचकैक गिच्चैक रस्ता पाणी भैर फिंकणै रंदु।
हमन भी कोशिश कर पर नी ह्वे! उल्टु जु खाणुक खायूं छे वी भैर ऐ गे। हम सब तै पूर विश्वास ह्वे गे छे कि दादा तै कुछ तंत्र मंत्र आंद ।
फिर दादा बडि स्कूल मा चलि गे और मी भी अगलि पढै क वास्त गाँव से शहर मा ऐ ग्यूं। कभी मुलाक़ात नी ह्वे!
बहुत साल बाद पता चल कि दादा बहुत बड़ स्वामी जी ह्वे गीन । दादा न अपर नाम क ऐथर स्वामी भी लगै आल! और खोज खबर ले त पता चल कि दादा न सातवीं क्लास क बाद पढै छोडीक हरिद्वार चलि गे छे! कुछ साधु संतों क संगत मा रैन और बाद मा खुद अपर आश्रम खोलि दे।
आश्रम खूब चलाणै च। चेला चांठि भी बहुत छन और भक्तों की भीड़ लगी रंद ।
चढ़ावा खूब च और आसपास क गाँव बिटीक लोग अपर दुखड़ा लेक स्वामी जी की शरण मा आंणै रंदन ।
गाँव से वूंक परिवार क और दुसर लोग भी गे छे बल स्वामी जी न ऊंकि आर्थिक मदद भी कर!
मी जांदु त पछांणी लींद पर जाण ही नी ह्वे । उम्मीद च दादा उर्फ़ स्वामी जी कुशल से ह्वाल!

Copyright @ हरि लखेड़ा

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