द्युं कि
स्वींणों कि कुटरि घामम फोळि द्युं कि ,
लुकयीं छ्वीं दगड़्योंम बोलि द्युं कि ।
भौत ह्वै गे जिन्दगि छाँछ छ्वळै ,
अब सबि गोळण नेतण खोलि द्युं कि ।
झूठि हैंसि मा त क्वी रंगत नि ऐ ,
सच्चि रुवै भि दगड़म घोलि द्युं कि ।
फक्कल चढ़ै-चढ़ै बक्कळि ह्वेग्य ,
जिंदगि खलिड़ि थै जरसि चोलि द्युं कि ।
छट छ्वड़ि जो कंचा , गुट्टा , अड्डु ,
वूं थै फिर खंडेलिम गोळि द्युं कि ।
आँसु कु हिसाब त अजि ह्वाई नीच ,
खुसक अँसुधरों थै अब तोलि द्युं कि ।
भंडि घरीं ह्वेग्य उमीदों फन्चि ,
सुरुक जिकुड़िम बटि उंद धोळि द्युं कि ।








विधा - सजल ।
मात्राभार - 18
समान्त - ओलि/ओळि
पदान्त - द्युं कि ।
©® सुनीता ध्यानी। नैनीडाँडा ।
उत्तराखंड
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स्वींणों कि कुटरि घामम फोळि द्युं कि ,
लुकयीं छ्वीं दगड़्योंम बोलि द्युं कि ।
भौत ह्वै गे जिन्दगि छाँछ छ्वळै ,
अब सबि गोळण नेतण खोलि द्युं कि ।
झूठि हैंसि मा त क्वी रंगत नि ऐ ,
सच्चि रुवै भि दगड़म घोलि द्युं कि ।
फक्कल चढ़ै-चढ़ै बक्कळि ह्वेग्य ,
जिंदगि खलिड़ि थै जरसि चोलि द्युं कि ।
छट छ्वड़ि जो कंचा , गुट्टा , अड्डु ,
वूं थै फिर खंडेलिम गोळि द्युं कि ।
आँसु कु हिसाब त अजि ह्वाई नीच ,
खुसक अँसुधरों थै अब तोलि द्युं कि ।
भंडि घरीं ह्वेग्य उमीदों फन्चि ,
सुरुक जिकुड़िम बटि उंद धोळि द्युं कि ।








विधा - सजल ।
मात्राभार - 18
समान्त - ओलि/ओळि
पदान्त - द्युं कि ।

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