सुबेरो घाम***Ghrwali poem written by Pawan Pant

 


सुबेरो घाम

धार पौंछी सुबेरो घाम
सुरक –सुरक सरकी –सरकी
अंधेरों ह्वेगै डांडी कांठियों मा
पर स्यु ऊंद नी फरकी !!

तनी गै छै कभी तू भी
रोजगार की आड़ मा
बोली गै छै मैमा तू भी की
बुबा पैसा कमे की ओलू पहाड़ मा !!

पर लाटा जब बटी प्रदेश गै तू
न तेरी चिट्ठी पत्री न कूई रंत रैबार
चूचा यनु भी क्या पाई तीन स्यख
भूली गै तू अपड़ों थे छोड़ी सैरू घरबार !!

नी मांगदा हम कभी त्वेमा कुछु
जरा कै मा हमारी राजी – खुशी त पुछदी
ये बुढ़ापा मा कैका सारू रोला हम
जरा हमारी लाचारी का बारा मा त सोचदी !!

जैन कभी त्वे कुछिला बटी भुयां नी धरी
स्या तेरी मां आज बिस्तर मा खसणीं चा
जैंका चौक –मौर त्वेन हिटण सीखी
स्या तिवारी आज रीती घाम तपणीं चा !!
लाटा रूडी गै पर तु नी ऐई

ह्यूंद गै पर तु नी ऐई
म्यारा लाटा आखिरी इच्छा चा हमारी
हमारा शरीर थे आग देणा खातिर ऐई !!

©® ✍️पवन पंत
थलीसैंण ,ग्राम टीला उत्तराखंड
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