मील अपुण पहाड़ बचाण ***Grhwali Poetry wrote by Bhupendra Dongriyal

 

मील अपुण पहाड़ बचाण

हे जी ! सुणमौ तुम।
मित यनु सोचमुँ,
जब सभि प्रदेशी,
प्रवासी उत्तराखण्डी बोलमी कि-
म्यारू-प्यारू पहाड़ म,
बसदि म्यारा प्राण।
अपुण उत्तराखण्ड मील,
छोड़ि कि कनि कै जाण।
तब ये गौं का गौं किलै बन्जेमी।
यख सभि शहर जाणु कु किलै सनेमी।
यांकु मतलब सिर्फ़ इकै च,
यूँ सभु कु मन म पाप च।
गिच म उत्तराखण्ड-उत्तराखण्ड,
अर दिल म शहरू कु जाप च।
देखो ये खुद भी रैंदी तड़ी म,
अपणा नौना पढ़ाणा मॉन्टेसरी म।
ये यख हम खणी बोल्दी,
अपणी बोलि-भाषा थैं न बिसराओ।
सरकरी स्कूल म भेजि की
बच्चों थै गढ़वळि जरूर पढ़ाओ।
अफ सुरुक-सुरुक,सरासरी,
नया-नया शहर बनाणा छिं।
पी वी आर अर मॉलू म,
वख सेल्फ़ी-सुल्फ़ी खिंचाणा छिं।
जगरी,पुछ्यारू दगड़ रैगी,
यख भूत,घरभूत,चुड़ैल,मसाण।
बस बम्बै,दिल्ली वला बोल्दी,
भूत पूजणा मिल भि पहाड़ जाण।
अपणु खैरी कु बान,
क्वी बोल्दी मील घरभूत नवाण।
पहाड़ छोड़ी क्वी नि बोल्दी,
मील अपुण पहाड़ बचाण।

(गढ़वळि काव्य संग्रह-चिटमिळू आसमान)
लिख्वार- भूपेन्द्र डोंगरियाल
ग्राम-बल्यूली
डाकघर-मरचूला
जनपद-अल्मोड़ा
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