पिड़ा रै सदनि हैरि की हैरि ***Grhwali Poetry wrote by Payash Pokhara Garhwali Gajal

 


गज़ल
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पिड़ा रै सदनि हैरि की हैरि

दूणेक दरद छन त्यारा खारेक छीं खैरि |
ज़िकुड़ि की पिड़ा ज़िकुड़ि मा नि धैरि ||

दुन्या हमथैं रुंदा बिलखदा देखि देलि |
हे दगड़्या आंसु तू आंख्यूं मा नि ठैरि ||

लोग त सुदि-सुदि दुख गंगजाणा रंदि |
दुन्यां दिख्यां कैकि सिकासैरि नि कैरि ||

रुंदरौं को दगुड़ू को करद जमना मा |
मान नि मान पर य बात च भौत गैरि ||

कन कना दिन काटिगीं लोग देखिले |
अफु दड़ नि छोड़ि तू हिकमत नि हैरि ||

सैंणा बाटा त कभि नि राया पाड़ मा |
उकळि उंधरि का रस्तों देखि नि डैरि ||

कतगा जुगतन करीं घौ मौळ्याणा का |
"पयाश" की पिड़ा सदनि हैरि की हैरि ||

©® पयाश पोखड़ा

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