जब अपड़ु भू कानून होंलू***** Grhwali Poetry wrote by Ramamurthy Silwal

 


जब अपड़ु भू कानून होंलू

जब अपडु भू कानून होलू त धौंस सि रौलु
अपड़ी जगा जमीन पर राजा जन बड़्यू रौंलू।
हैंका कि नौकरी चाकरी कन सि भलु छ कि।
अपड़ु कुछ घौर मां ही स्वरोजगार अपनौंलू।
पर दगण्यों याद रख्या, यू तभि साकार व्है पोंलू।
जब हमारु राज्य कुअपड़ु सशक्त भू कानून व्होंलु।
जरा सोचा दगण्यों हमारा दैं दादू पुरूखौं न ।
अपडी जगा ज़मीन किलै संज्वैं कैं रखि व्होलि।
अर हम चंद रूपयू का खातिर भिखमंगा बड़िक।
अपडी जगा जमीन भैर का पूंजीपतियों तै बैंचड़ा लैंगि
हमारू अस्तित्व अर स्वाभिमान तभि तक बड्यू रालू।
जब-तक हमारी माटी पाणी डोखरी पुगड़ी बच्यी रालि।
हमारी पहाड़ी अर उत्तराखंडी की पच्छाण तभि तलक छ।
जब तक हम अपडी थाती माटी कुड़ी मड्यैलि सि जुड़्या छ
जब यि सभि धाड़ि बंसल, मित्तल,गुप्ता तैं बिकि जालि।
तब हमारी पहाड़ की अस्मिता बचौंड़ की समस्या ऐ जालि
इलै समझी बुझी जावा मेरा उत्तराखंडी भैं भैंणौं।
अपड़ी जगा जमीन अफ्विं मां रेंणा द्यावा।
अर धौंस सि अपड़ी जगा जमीन पर कुड़ी मडेंली बड़ावा
अर साग बुझि बागवानी लगैंक स्वालंबन अपनावा।
अर सशक्त भू कानून को पाठ सभी उत्तराखंडियों तैं पढावा।

© राममूर्ति सिलवाल
ग्राम नगल ,पट्टी- भंडारस्यू
पो .ओं. - मंजगाव,विकासखंड डुंडा,ज़िला उत्तरकाशी
9557465051

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