रुज्यां-भिज्यां स्वीणों थैं ***Grhwali Poetry/Garhwali Gajal wrote by Payash Pokhara

 


गज़ल
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रुज्यां-भिज्यां स्वीणों थैं

रुज्यां-भिज्यां स्वीणों थैं घामम उबाणु छौं ।
अर सुखिला सुपिन्यों थैं आंसुम डुबाणु छौं ॥

कख रदीं खुट्टा भि कांडो मा हिटण जुगा ।
जब फूलु थैं स्यूड़-नकचुण्डी दिखाणु छौं ॥

बिरणा क्या यख अपणै भट्यूड़ भटकैगीं ।
मि अपणि छुयुं मा तुमथैं किलै रुवांणु छौं ॥

कखड़ि का चीरा सि जो जिकुड़ि मा दे ग्यौ ।
दळखा मौळ्याणा कु कड़पत्या चुवाणु छौं ॥

तुमरि खुद भि पाणि सि खळ्ळ बोगि ग्याइ ।
छाल बैठिकै पुरणा दिन नवाणु-धुवाणु छौं ॥

©® पयाश पोखड़ा
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