मोक्ष शिवा***Hindi poem written by Balkrishna D. Dhyani

 


मोक्ष शिवा

अपने को ढूंढ़ ने लगा हूँ
बिखरा पड़ा समेट ने लगा हूँ

आवाज अनसुना कर भागता फिर रहा
अपनों से लड़ गैरों को अपना रहा हूँ

दो पल शेष एक पल तेरा एक पल मेरा
भर्मित होकर पल से खुद को भर्म रहा हूँ

ज्वाला लगी है ऐसी मन भीतर भीतर
सब कुछ स्वाह करने वो तक्ष लगी है

समेटा हुआ अब फिर बिखरने लगा
निराकार स्वरूप और वो निखरने लगा हैं

अपने से आज मैं ऐसे मिल रहा
जो ढूंढ रहा था आज उसमे मिल गया हूँ

बालकृष्ण डी. ध्यानी,

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