नारी का वंदन***Hindi poem written by Thakur Tara

 


नारी का वंदन
"नारी" तुम हो इस धरा की सुंदर रचना,
ईश्वर तुम हो तुम ही "प्रकृति" की वंदना,
"जननी" ही तुम हो,शिशु से पुरुष है तेरी कल्पना,
आज "कलयुगी" सोच ने बर्बाद की तेरी सरंचना,,
निर्दोष "आंखे",मन कोमल,, हृदय है तेरी संवेदना,,
इन सब को "उपभोग" समझ कुछ हब्शी देते तुझे वेदना,,
रोती बिलखती आंखों की कभी न समझ पाई ये प्रधानता,
पुरातन काल से ही चलती आ रही है तेरी महानता,,
कभी टूटी न तू, टूट गई आज के समाज की समानता,,
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,ये सब झूठ है जमाना पुकारता,,
तू न बनी सबल, हर कुत्सित है तेरे जिस्म को निहारता,,
हर मां ने पिलाया दूध जिस मर्द को वही उसे खा दहाड़ता
तेरी ममता की कीमत न मरकर कर सकेगा कोई चुकता,
सिरह उठी ये आज समस्त देवभूमि,, करती तेरे अमूल्य जीवन की वंदना ,,,,
ठाकुर तारा ,
सुंदर नगर मंडी
हिमाचल प्रदेश
दिनांक 14/01/24
दूरभाष 7649986158

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