उत्तराखंड आंदोलन
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी,
लाठी डंडे खाकर और ,
सीने में गोली खाई थी।
इकहत्तर में हुआ गठन,
उक्रांद का मसूरी में,
राज्य मांग की अलख जगी,
और फूट पड़ी चिंगारी में।
निकल पड़े गांव शहर से,
लेकर मशाल जलाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
निकल पड़ा जब जन सैलाब,
खटीमा की सड़कों पर।
लाठी और चली गोलियां
आंदोलनकारी निहत्थों पर।।
प्रताप और परमजीत सहित,
सातों ने जान गंवाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
देख खटीमा की हालत पर,
हुआ मौन जुलूस मसूरी में,
मार दिया सगी बहनों को,
पुलिस की गोलीबारी में।
टूट पड़ा कहर पुलिस का,
घायलों को चोट आई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
दिल्ली जाने वालों को,
मुजफ्फरनगर में रोक दिया।
रात में घेर कर पुलिस ने,
गोलियों के आगे झोंक दिया।।
पहाड़ की महिलाएं भी,
कहां अस्मत बचा पाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
सुनकर खबर बर्बरता की,
भड़के लोग देहरादून में।
पुलिस की लाठीचार्ज में,
फिर उग्र हुए लोग जुनून में।।
राजेश को लगी गोली भी,
सत्ताधारी घर से आई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
कोटद्वार भी उबल पड़ा था,
अत्याचार के विरोध में।
यहां भी दो शहीद हुए,
प्रशासन के प्रतिशोध में।।
राइफल के बटों से मारकर,
टूटी जिनकी कलाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
नैनीताल मे विरोध को,
पुलिस जब कुचल ना पाई।
प्रताप सिंह बेकसूर को,
होटल से घसीट कर लाई।।
जान बचाने के चक्कर में,
गर्दन में गोली खाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
श्रीनगर में आंदोलनकारी,
बैठ गए सब अनशन पर।
पुलिस के लाठी-डंडों से,
पिटे राजेश और यशोधर।।
पत्थरों से मारकर इनको,
लांश गंगा में बहाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
बच्चे, बूढ़े और जवानों ने,
कंधे से कंधा मिलाया।
तब जाकर हमने अपना,
उत्तराखंड राज्य पाया।।
याद रहेंगे स्मृतियों में सदा,
जिनसे यह पहचान पाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
© संजय नेगी 'सजल'
ग्राम - गढ़मिल
जिला-रुद्रप्रयाग
हाल निवास-हरिद्वार
उत्तराखंड
सर्वाधिकार सुरक्षित
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यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी,
लाठी डंडे खाकर और ,
सीने में गोली खाई थी।
इकहत्तर में हुआ गठन,
उक्रांद का मसूरी में,
राज्य मांग की अलख जगी,
और फूट पड़ी चिंगारी में।
निकल पड़े गांव शहर से,
लेकर मशाल जलाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
निकल पड़ा जब जन सैलाब,
खटीमा की सड़कों पर।
लाठी और चली गोलियां
आंदोलनकारी निहत्थों पर।।
प्रताप और परमजीत सहित,
सातों ने जान गंवाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
देख खटीमा की हालत पर,
हुआ मौन जुलूस मसूरी में,
मार दिया सगी बहनों को,
पुलिस की गोलीबारी में।
टूट पड़ा कहर पुलिस का,
घायलों को चोट आई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
दिल्ली जाने वालों को,
मुजफ्फरनगर में रोक दिया।
रात में घेर कर पुलिस ने,
गोलियों के आगे झोंक दिया।।
पहाड़ की महिलाएं भी,
कहां अस्मत बचा पाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
सुनकर खबर बर्बरता की,
भड़के लोग देहरादून में।
पुलिस की लाठीचार्ज में,
फिर उग्र हुए लोग जुनून में।।
राजेश को लगी गोली भी,
सत्ताधारी घर से आई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
कोटद्वार भी उबल पड़ा था,
अत्याचार के विरोध में।
यहां भी दो शहीद हुए,
प्रशासन के प्रतिशोध में।।
राइफल के बटों से मारकर,
टूटी जिनकी कलाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
नैनीताल मे विरोध को,
पुलिस जब कुचल ना पाई।
प्रताप सिंह बेकसूर को,
होटल से घसीट कर लाई।।
जान बचाने के चक्कर में,
गर्दन में गोली खाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
श्रीनगर में आंदोलनकारी,
बैठ गए सब अनशन पर।
पुलिस के लाठी-डंडों से,
पिटे राजेश और यशोधर।।
पत्थरों से मारकर इनको,
लांश गंगा में बहाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
बच्चे, बूढ़े और जवानों ने,
कंधे से कंधा मिलाया।
तब जाकर हमने अपना,
उत्तराखंड राज्य पाया।।
याद रहेंगे स्मृतियों में सदा,
जिनसे यह पहचान पाई थी।
यूं ही नहीं मिला राज्य,
ये बरसों की लड़ाई थी।।
© संजय नेगी 'सजल'
ग्राम - गढ़मिल
जिला-रुद्रप्रयाग
हाल निवास-हरिद्वार
उत्तराखंड
सर्वाधिकार सुरक्षित
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