मांगों अपना मूलनिवास Hindi Poetry By Dheeraj Gusain

 


मांगों अपना मूलनिवास

आज हिमालय पुनः जगाता
फिर से मांगो निज अधिकार
तोडो़ अपनी गहरी निंद्रा
और उठाओ फिर आवाज

देखो देखो चहुं तरफ
कंहा गया तेरा संसार
कटते जंगल, लुटती नदियां
कंहा छिना भौमिक अधिकार

तेरे पुरखों ने जिसे बसाया
काट काट कर कठिन पहाड़
उस भूमि से वंचित करके
किसने बंद किए गिरी द्वार

किसने छीना रोजगार
क्यों युवा हमारा है बेगार
अपनी ही धरती पर कुंठित
वह वंचित, मांगे निज अधिकार

ऊंचे पद पर कंहा पहाड़ी
प्रशासन में क्या अधिकार
हिस्सेदारी कितनी किसमे
फिर से मांगो निज अधिकार

बसे बसाये गांव उजड़ते
सुविधा से वंचित सकल पहाड़
स्वास्थ शिक्षा की रीढ़ भ्रंश है
और पलायन करें पहाड़

दशकों का संघर्ष सहेजे
निज प्राणों का कर बलिदान
गठन हुआ इस सभ्य राज्य का
यह फिर से मांगे निज अधिकार

आज हिमालय पुनः जगाता
जागो फिर से मेरे लाल
मांगों अपना भू अधिकार
मांगों अपना मूलनिवास

©® धीरज गुसाईं
ग्राम मरखोला,
पोस्ट आफिस चम्पेश्वर,
पौड़ी गढ़वाल
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— feeling grateful in India.

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