हे कागज के टुकड़ों Hindi Poetry By Sudama Dobriyal

 


हे कागज के टुकड़ों

हे कागज के टुकड़ों सच में तुम में देखा रंग अजूबा है,,
हे कागज के टुकड़ों सच में तुम में देखा रंग अजूबा है,,,
घर बार हर त्याग दूर चला तुम्हे पाने को देखा तुम में दम अजूबा है,,
कभी अपनों की याद सताए कभी अपनों का दुःख रुलाये,,
पर तुम से बढ़करना कोई इस जग में दूजा अजूबा है,,
हे कागज के टुकड़ों सच में तुम में देखा रंग अजूबा है,,
रंगों में देखा तुम्हें हर रंग में तुम समाए हो,,
कोई ऐसा रंग नही जिस रंग में तुम ना आए हो,,,
किसी की उम्र गुजर गई कोई बैठे उम्र बिठाये हो,,
कुछ को मिला कुछ-कुछ और बहुत सारों ने नजाने कैसे जीवन बिताएं हो,,
हे कागज के टुकड़ों सच में तुम में देखा रंग अजूबा है,,,,
जीवन का रंग फीका पड़ जाय पर तेरा रंग अमिट सा है,,
कागज के हे टुकड़ों तुम पाने को हर इंसान कहाँ-कहाँ ना करता जीवन सबमिट सा है,,
दुनियाँ दीवानी तुम्हारी पर हर दिल लगी का नशा तुम बिन फीका है,,,
रिश्ते कायम है वेबश दिशा कब बदल जाय ये आश लगाये इंसान टिका है,,,
हे कागज के टुकड़ों सच में तुम में देखा रंग अजूबा है,,,
कोई उम्र शौक से गुजारे तुम्हें लगाने ठिकाने में,,,
उम्र गुजारे कोई तुम्हारा एक टुकड़ा फजूल तुम्हें गँवाने में,,
कोई गुजारे यूँ सोचे दिन तुम्हें अपने शान-शौकत उड़ाने में,,,
कोई क्यूँ तरसे यूँ तुम्हें बेपनाह कमाने में,,
हे कागज के टुकड़ों सच में तुम में देखा अजूबा है,,,
देखा सच में अजूबा है,,,
🙏जय श्री राधे, जय वासुदेव🙏
आपका अनुज
✍️राधे रविन्द्र रावत(RRR)
रुद्रप्रयाग जखोली का सुदूरवर्ती
पट्टी बाँगर कु मुन्याँघर रैबासी🙏
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— feeling happy in India.

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