खैरी मेरे खेत खलिहानों की
ना खेत होगा ना खलिहान होगा
पहाड अपना जब बीरान होगा
बीरान होंगे घर और आँगन
जमेगी घास जब बरसेगा सावन
ढूँढेगा नाती जब तुम्हारा दाखिल ख़ारिज
अपणी ही फांग्यूं से जो अंजान होगा
तहसील से पायेगा खतौनी तुम्हारी
जैन गुप्ता गोयल जिसमें हिस्सेदार होगा
खोजेगा नाती जब परिवार रजिस्टर तुम्हारा
प्रधान भी तब गौं का कोई डुट्याली होगा
ज़िला पंचैत क्षेत्र पंचैत सब देशी होंगे
दिल्ली बंबै वाले तुम्हारे तब सांसद विधायक होंगे
अपने ही घर में जब वो अंजान होंगे
मूल निवासी होकर भी जब रो रहे होंगे
अधिकार उनके सब छिन चुके होंगे
नाती तुम्हारी आत्मा को तब गाली दे रहे होंगे
मूल निवासी अपने सब घर में ही ग़ैर होंगे
भैर वाले द्वी हथ्युं से जिकुडी पीट रहे होंगे
नौकरी चाकरी हमारी वो छीन चुका होगा
काग़ज़ उसके पास जब हमारे पहाड का होगा
जल जंगल ज़मीन हमारा छिन चुका होगा
हमारे धारे पंदेरों पर ईनका ही क़ब्ज़ा होगा
नौकरी पेशा में भी बर्चस्व देश्यूं का होगा
नाती पोता हमारा ईनका चपरासी नौकर होगा
मूल निवास छीन गया तो
दिन वो भी दुर नहीं होगा
जब गडवाल रैफ़ल की भर्ती मे पौडी का
सिंधी साहब का नाती फस्ट होगा
फिर ना खेत होगा न खलिहान होगा
अपने अस्तित्व से पहाड जब बीरान…
समस्त रैबासी प्रवासी पहाड़ी भाई बहिनों को समर्पित मेरी ये स्वरचित पंक्तियाँ
©
पूर्व सैनिक सुदेश भट्ट"दगड्या
क्षेत्र पंचायत सदस्य बूंगा
उत्तराखंड
#सुदेश_भट्ट #पथिक #पौड़ी_गढ़वाल #टेहरिगढ़वाल #कुमांऊ #uklaguli #posts #poet #kumaoni #worlpoetry #indian #Poetry #अल्मोड़ा #india #gharwalipoems #video #poems #Ghrwali #gharwali #बूंगा #instagram #Youtube #facebookpost #uttrakhand #देहरादून #अल्मोड़ा
ना खेत होगा ना खलिहान होगा
पहाड अपना जब बीरान होगा
बीरान होंगे घर और आँगन
जमेगी घास जब बरसेगा सावन
ढूँढेगा नाती जब तुम्हारा दाखिल ख़ारिज
अपणी ही फांग्यूं से जो अंजान होगा
तहसील से पायेगा खतौनी तुम्हारी
जैन गुप्ता गोयल जिसमें हिस्सेदार होगा
खोजेगा नाती जब परिवार रजिस्टर तुम्हारा
प्रधान भी तब गौं का कोई डुट्याली होगा
ज़िला पंचैत क्षेत्र पंचैत सब देशी होंगे
दिल्ली बंबै वाले तुम्हारे तब सांसद विधायक होंगे
अपने ही घर में जब वो अंजान होंगे
मूल निवासी होकर भी जब रो रहे होंगे
अधिकार उनके सब छिन चुके होंगे
नाती तुम्हारी आत्मा को तब गाली दे रहे होंगे
मूल निवासी अपने सब घर में ही ग़ैर होंगे
भैर वाले द्वी हथ्युं से जिकुडी पीट रहे होंगे
नौकरी चाकरी हमारी वो छीन चुका होगा
काग़ज़ उसके पास जब हमारे पहाड का होगा
जल जंगल ज़मीन हमारा छिन चुका होगा
हमारे धारे पंदेरों पर ईनका ही क़ब्ज़ा होगा
नौकरी पेशा में भी बर्चस्व देश्यूं का होगा
नाती पोता हमारा ईनका चपरासी नौकर होगा
मूल निवास छीन गया तो
दिन वो भी दुर नहीं होगा
जब गडवाल रैफ़ल की भर्ती मे पौडी का
सिंधी साहब का नाती फस्ट होगा
फिर ना खेत होगा न खलिहान होगा
अपने अस्तित्व से पहाड जब बीरान…
समस्त रैबासी प्रवासी पहाड़ी भाई बहिनों को समर्पित मेरी ये स्वरचित पंक्तियाँ
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क्षेत्र पंचायत सदस्य बूंगा
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