हमर पहाड़ ***Grhwali Poetry wrote by Bhagat Rawat Basab

 


हमर पहाड़

आज कु युवा पीढ़ी ब्वुना छन
क्य रख्यूं ये पहाड़ मां
पुछो अपण बुजुर्गो तें
क्य नी च ये रंगीलो पहाड़ मां
पितरों कु रसायूं बसायूं गौं कुड़ी पुंगडी ध्यौ द्यवता
आज बि छन समलौंण बण्यां
जलम लैनी हमन ईं भूमि मां
ग्वै लगैनी जैं डंडाली चौक
कतका खैरी खैन हमर तुमर बाब दादाओं न
ईं धरती तैंसजण संवरण मां
अपण सब्बि ज्यु धाणिलगे दीनि
यु माटू मांअपण पसीना बहायी अन्न उगाई
हमतें तुमतें पाली पोसी बडु बणाई
किले ब्वुनै छ्या क्य च ये पाड़ मां
सब्बि धाणि च ये पाड़ मां
यु कुड़ी पुंगड़ी तुम कुन विरासत मां छोड़ी गै
अपणी रीति रिवाज गढ़ संस्कृति जोड़ी गै
मनखी कु जरुरत ज्यादा ह्वैगे
तब्बि त कुदरत बि अब नाराज ह्वैगे
पाड़ छोड़िक तुम शेहरों मां सण बैठि गै
तब्बि तुम ब्वुना छ्या क्या च ये पाड़ मां

©®
भगत रावत बासब

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