मुसाफिर सी जिंदगी***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt

 


मुसाफिर सी जिंदगी

मुसाफिर सी जिंदगी
आज यहां कल कहां
वहीं आ जाती घूम कर
जिंदगी जहां से शुरू की थी
बस इस इंतजार में
देर होगी सबेर होगी
सुहानी सुबह होगी
जो जग मैं आया है
वो जग जीता सदा कब
भाग्य के आगे
भटकना होता जब तब
लोभी,कामी,क्रोधी
कब करते भक्ति भाव से
भक्ति करता कोई सूरमा
जाति वर्ण कुल खोय
संगत ही गुण उपजत
संगत ही गुण जाय
ध्यान श्याम का कैसे बढे
जब चित्त रहा भरमाय
प्रेम घट जाता
अंजुलि पसार
मान घटे पर घर जा
देख पापिन का
घर बडा
नारी कुलीन
न कुपंथ चले
सफर में हर मुसाफिर
हमसफर हो नहीं सकता
मुसाफिर सी जिंदगी
सारी प्रीत खो कर
गुजर रही
जिस मुसाफिर को
मंजिल तक जाना
उसे कोई मुश्किल
रोक नहीं सकती।
दमयंती

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