फिर एक गौं बसौंला Wrote By Gharwali Poet Pawan Pahari (Paanthari)

 


#गढवालिम_कविता
फिर एक गौं बसौंला

सुपन्यू तुम्हारू, सुपन्यू मेरु..
एक ही त छौ..!
वे सुपन्या थेन सच केरी दिखौंला,
तुम अर मी एक गौं बसौंला..!!

छुट्यां घार, टुट्यां द्वार....
देली, चौका, गौला, गुठ्यार..!
जख तुम्हारु बितयूं बचपन,
ज़ख मेरू ख्यालूं कु सुखिलू जीवन..
धै लगाणू... वे बचपन थे बौड़े ल्योंला..!!
तुम अर मी एक गौं बसौंला..!!

बांजा पुंगड़ा ज़ख कभी गोट लगदी छे..
दगड्यों की कछड़ी, छ्वीं घोटि-घोट लगदी छे..!
ऊं बांजा पुंगड़ा चलदा करला,
ढीटु बंधला, हिकमत नि हरला..!
फिर हरचीं आस की मौल्यार लौंला,
तुम अर मी एक गौं बसौंला...!!

तुम्हारा दगड्या हरच्यां होला,
शहरूं की चकाचौंध मा....
मी भी निरभै अलज्यूं रै ग्यों,
जिमबर्यूं का बौझ मा...!
ते बौझ भार भी अब,
अपड़ी गौं मा ही बिसौंला,
तुम अर मि फिर एक गौं बसौंला..!!

~पवन पहाड़ी (पाँथरी) 🌲🌳
91 88601 34216
ग्राम : ढंगसोली, पौड़ी
उत्तरखंड भारत
#पवन_पहाड़ी #पौड़ी_गढ़वाल #टेहरिगढ़वाल #कुमांऊ #uklaguli #posts #poet #kumaoni #worlpoetry #indian #Poetry #UKLaguli #ढंगसोली #पाँथरी#गढ़वाळ #india #gharwalipoems #video #poems #Ghrwali #gharwali #पौडी #instagram #Youtube #facebookpost #uttrakhand #himdipoems #उत्तराखण्ड #भारत 
कम देखें

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ