#गढवालिम_कविता
|| द्यो देवतों ना बिसरा ||
(देवी देवता मत भूलो)
स्वरचित
यह रचना वर्तमान समाज में मनुष्यों द्वारा अपने देवी देवताओं और पित्रों को भूलकर व्यक्तिगत ईष्या, राग-द्वेश में लिप्त रहने से सचेत करता है! हमें अपनी वास्तविकता और संस्कृति -संस्कार को नहीं भूलना चाहिये अन्यथा परिणाम भयावह होते हैं||
द्यू रूठी, दुप्यांण रूठी, रूठगेन देवता तमाम,
रोड़ बणेलि, कूड़ी बणेलि, मौड़ु दुफरै घाम,
तब लागणु द्यो देवता, और पितरों दोष,
पुछ्यारु मा जाणा उच्याँण करि तब आणु होश ||
जब बरंगताज ह्वेगि, बिसरि उच्याँण भि करि छै,
पल मैंना पूजोलु जरूर, यनु वचन दीन छै,
छे मैना, साल बीत्याँ, देवते तरफां सुन्न पट्ट,
मणि मणि देवत आजि असर दिखैलि झट्ट||
फिर आजि पुछ्यारु मु गेन, सु हि निकलि दुबारा,
तब पुछ्यारन बतै कि कोरी उच्याँण ह्वे कतिबारा,
अब जादै असर दिखौण लगी, तब कना सरगा बरगी,
जब लौड़ी गोड़ी दिन-दुफरां एकलंग भ्यळ फरगी||
सुदि नि लगदु देवत भी तुमारू अपौ दोष ह्वलु
कभी द्यू धुप्याँण नि देखि देवता कु रोष ह्वलु
जब चिताई चड़ग धड़ग खुट बैटिन मुंड तलग,
तब घौसि देवतो मड़, थान बैटी श्मशान तलग||
जख देवतों थान छा, तख कुखूड़ों घोल बणैल,
पुराणा, द्यू निशाणाँ, कु जाण कख नठैल|
अपणा मकानों तुमुन ठोस रंग बानिस लगैल,
देवतों मढ़ों तुमुन ढुंगा, बिलोंड़ा तक नठैल||
आफु तुम खाण लग्याँ द्वि हाथन सपोड़ा पट्ट,
द्यो देवताें कैन पुजण यु जनि बिसर्यु घट्ट||
अरे सबसे पलि भूमि स्वामी तै पूजण पड़दु,
नर्सिंह और गोरील भैरौ तै भी नचौण पड़दु||
तब जैकि कखि सुख चैन से राैला तुम,
अपणी कमै धमै आराम से बेठि खाैला तुम||
जब मनखि आपस मां खिर्याँण छोड़ाला,
तब कखि मनख्युँ जन दिख्याला तुम||
जब देवता खुश रौला त तुम भी सुखी राला,
पीढ़ी दर पीढ़ी सभि जुग जुग राला|
सबु तै पूजी पाजि चकाचक करा दौ,
तभि तुमरि पितरा, स्वर्ग मां सुखी राला||
अपणा यों द्यो देवतों ना बिसरा तुम,
आफु तै देवतों से बड़ु ना समझा तुम|
अरे यु धरती कैन खाई, कैन नि खाई,
उड़ावा ना, धरती का कीड़ा छिन, धरती मा ही रावा तुम||
स्वरचित- लक्ष्मण नेगी चारण
ग्राम- सुतोल (सुगड़)
नन्दानगर विकासखण्ड चमोली
प्रबंधक- गुरुकुल संस्थान, गोपेश्वर (चमोली)
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|| द्यो देवतों ना बिसरा ||
(देवी देवता मत भूलो)
स्वरचित
यह रचना वर्तमान समाज में मनुष्यों द्वारा अपने देवी देवताओं और पित्रों को भूलकर व्यक्तिगत ईष्या, राग-द्वेश में लिप्त रहने से सचेत करता है! हमें अपनी वास्तविकता और संस्कृति -संस्कार को नहीं भूलना चाहिये अन्यथा परिणाम भयावह होते हैं||
द्यू रूठी, दुप्यांण रूठी, रूठगेन देवता तमाम,
रोड़ बणेलि, कूड़ी बणेलि, मौड़ु दुफरै घाम,
तब लागणु द्यो देवता, और पितरों दोष,
पुछ्यारु मा जाणा उच्याँण करि तब आणु होश ||
जब बरंगताज ह्वेगि, बिसरि उच्याँण भि करि छै,
पल मैंना पूजोलु जरूर, यनु वचन दीन छै,
छे मैना, साल बीत्याँ, देवते तरफां सुन्न पट्ट,
मणि मणि देवत आजि असर दिखैलि झट्ट||
फिर आजि पुछ्यारु मु गेन, सु हि निकलि दुबारा,
तब पुछ्यारन बतै कि कोरी उच्याँण ह्वे कतिबारा,
अब जादै असर दिखौण लगी, तब कना सरगा बरगी,
जब लौड़ी गोड़ी दिन-दुफरां एकलंग भ्यळ फरगी||
सुदि नि लगदु देवत भी तुमारू अपौ दोष ह्वलु
कभी द्यू धुप्याँण नि देखि देवता कु रोष ह्वलु
जब चिताई चड़ग धड़ग खुट बैटिन मुंड तलग,
तब घौसि देवतो मड़, थान बैटी श्मशान तलग||
जख देवतों थान छा, तख कुखूड़ों घोल बणैल,
पुराणा, द्यू निशाणाँ, कु जाण कख नठैल|
अपणा मकानों तुमुन ठोस रंग बानिस लगैल,
देवतों मढ़ों तुमुन ढुंगा, बिलोंड़ा तक नठैल||
आफु तुम खाण लग्याँ द्वि हाथन सपोड़ा पट्ट,
द्यो देवताें कैन पुजण यु जनि बिसर्यु घट्ट||
अरे सबसे पलि भूमि स्वामी तै पूजण पड़दु,
नर्सिंह और गोरील भैरौ तै भी नचौण पड़दु||
तब जैकि कखि सुख चैन से राैला तुम,
अपणी कमै धमै आराम से बेठि खाैला तुम||
जब मनखि आपस मां खिर्याँण छोड़ाला,
तब कखि मनख्युँ जन दिख्याला तुम||
जब देवता खुश रौला त तुम भी सुखी राला,
पीढ़ी दर पीढ़ी सभि जुग जुग राला|
सबु तै पूजी पाजि चकाचक करा दौ,
तभि तुमरि पितरा, स्वर्ग मां सुखी राला||
अपणा यों द्यो देवतों ना बिसरा तुम,
आफु तै देवतों से बड़ु ना समझा तुम|
अरे यु धरती कैन खाई, कैन नि खाई,
उड़ावा ना, धरती का कीड़ा छिन, धरती मा ही रावा तुम||
स्वरचित- लक्ष्मण नेगी चारण
ग्राम- सुतोल (सुगड़)
नन्दानगर विकासखण्ड चमोली
प्रबंधक- गुरुकुल संस्थान, गोपेश्वर (चमोली)
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कम देखें
— उत्तराखंड की लगूली में खुश महसूस कर रहे हैं.
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