तुम द्यावता



तुम द्यावता मीं दासी,
तुम रोज रोज सोदा[1] होन्दा,
मी होन्दी जान्दी बासी।
तुम राली मां घाँडी
तुम दिप्प हिरेन्दो जै मुखनी
मी काँचे च्ची हाँडी।

तुम स्वाती मीं चोली,
तुम पूर्ण रूप छाँ भंडारा,
मीं रोज तिसाली लोली।

तुम पराण मी काया,
तुम योगी छा उच्च विरागी,
मीं धूल भरा छौं माया।

तुम डाली मीं दाणी,
तुम जीवन का, नव अंकुरा,
मीं छौं रस वालो पाणी
तुम गौं स्वरूप मीं तैलो
तुम अपराध्यूँ की छिमा छयाँ
मीं बगत बगत को गैलो।

कवि :-गिरधारी लाल 'कंकाल'

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