तुम भी और मै भी
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देखने विकास को उत्साहित
तुम भी थे और मै भी था ।
हौसला पहाडों का गिराने में
शामिल तुम भी थे मै भी था ।
अब जब विखरने लगे हैं पहाड
तो आखिर रो कर फायदा क्या ?
इस साजिश में शामिल मेरे भाई
तुम भी थे और मै भी था ।
तब नही सोचा था तुमने या
जान बूझ कर अंजान थे
विनाश होगा एक रोज ये पता
तुम्हे भी था मुझे भी था ।
मगर कहाँ फर्क पड़ताहै
किसी का घर उजड़ने से
नींवको कुरेदने में शामिल
तुम भी थे और मै भी था I
क्यों दोष दूँ में सरकार को
आजके हाल पर
सरकार में शामिल
तुम भी थे और मै भी था ।
ये जो लिखे थे खत विकास के लिये
सरकार को सब ने .
उसकी सहमती में लिखे पन्ने पर नाम
तेरा भी था मेरा भी था ।
लाशों के ढेर पर विकास
ऐसा कभी सोचा न था
कोई मरे उजड़े इससे मुझे क्या
मगर इस सोच में सामिल
तू भी था और मै भी था
अभी भी वक्त है खोल आँखें
खुद भी जाग औरों को भी जगा
ताकि कह सकें गर्व से उस रोज
हिफाजत में इसके मै भी था ।
संदीप गढवाली
©®१०२२१
1 टिप्पणियाँ
आभार ध्यानि जी आपके द्वारा यों उत्साह बढ़ाना व सभी को सम्मान देने के लिये मै आपका आभारी हूँ
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