थमsळि कुल्हड़ी का,

 

थमsळि कुल्हड़ी का,

 

थमsळि कुल्हड़ी का,

घाव हूंदा त,

कैदिन मौळ जांदा,

ये जो आज भी,

बिषाणा छन वो तेरा,

अपड़ों का दियां छन रै मैती।

फूक सै ले,

स्यूं फुक्यां/डम्यां फुंफरों थै,

न दिखौ उंमा,

वो मुठ्ठी पर लूण लेकी,

त्वै सांसु दीणा छन रै मैती।

 

केशव डुबर्याळ "मैती"




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