कोरोना से***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt


कोरोना से

 

कोरोना से कुछ तो समझ ही गये होंगे

वो मां बाप जिनको अपनी दौलत पर बडा गुरूर था

वो अमीर जिन्होंने धरती पर पैर नहीं रखे

वो जिन्होंने पैसे के अलावा रिश्तों का मोल नहीं समझा

नहीं समझा जब मनुष्यों ने धरती को

नहीं समझा मिट्टी के गुण धर्म को

गुरूर करते रहे अपने पर

ऐसे ही बदनाम कौन होना चाहता

 कौन चाहता है घृणा बोना

 समझा दिया कोरोना ने

चाबी हर ताले पर ऐसे  चल जाती?

स्वर्ग सी धरती को नरक बना डाला

वन पाट डाले

नदियां खोद डाली

गायैं सडकों पर भूखी भटक रही

आखिर ये धरती ही कितना नीर बहाती

कभी शिकायत मत करना ईश्वर से

अपने कर्म भी याद कर लेना

ईश्वर बडा है,मैंने सुना है

ऐसे ही कोई सारे संसार को सता रहा है

अगर कोरोना नहीं आता

लोग भूल गये थे घर पर शांझ को जल्दी आना

घर मैं एक पल बैठ कर बतियाना

रूठना और मनाना

घर की औरतों की आजादी छीन कर

मालिक बन जाना

धरती ने दी नदियां वन जल भरे निर्झर

जब बच्चा बडा हो जाय तो

मां भी गोद से उतार देती

ये काल चक्र

कोरोना

नया युग ले कर आयेगा

विचारों का मंथन होगा अब

धरती का अभिषेख होगा

धरती के पुत्रों के रक्त से

जो बच जायेंगे

वो अतीत दुहरायेंगे

फिर से आयेगा हंसता शैशव धरती पर

फिर से आयेगा खिलता यौवन धरती पर

नव युग आयेगा

हर मनुज निर्मल मन होगा

इंसान मिलना संभव होगा

ऐसा नहीं कि फिर से

समस्या खडी हो

और सलाह देने वाले भी न हों

कहीं ऐसा न हो

आंख ,कान,नाक,सब बंद ही रहैं

ये शब्द नहीं

टूटी ईंटें हैं

मेरे स्वर्णिम सपनों के महलों की

जहां भूख,अनिंन्द्रा,छल ,कपट,धोखा

गरीबी,उलाहने,और भी जाने कितने दंश

मैं खुद को ढूंढती हूं

सुबह होती है शाम होती है

होती ही रहती है

 

दमयंती भट्ट,

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