कोरोना
से
कोरोना
से कुछ तो समझ ही गये होंगे
वो
मां बाप जिनको अपनी दौलत पर बडा गुरूर था
वो
अमीर जिन्होंने धरती पर पैर नहीं रखे
वो
जिन्होंने पैसे के अलावा रिश्तों का मोल नहीं समझा
नहीं
समझा जब मनुष्यों ने धरती को
नहीं
समझा मिट्टी के गुण धर्म को
गुरूर
करते रहे अपने पर
ऐसे
ही बदनाम कौन होना चाहता
कौन चाहता है घृणा बोना
समझा दिया कोरोना ने
चाबी
हर ताले पर ऐसे चल जाती?
स्वर्ग
सी धरती को नरक बना डाला
वन
पाट डाले
नदियां
खोद डाली
गायैं
सडकों पर भूखी भटक रही
आखिर
ये धरती ही कितना नीर बहाती
कभी
शिकायत मत करना ईश्वर से
अपने
कर्म भी याद कर लेना
ईश्वर
बडा है,मैंने सुना है
ऐसे
ही कोई सारे संसार को सता रहा है
अगर
कोरोना नहीं आता
लोग
भूल गये थे घर पर शांझ को जल्दी आना
घर
मैं एक पल बैठ कर बतियाना
रूठना
और मनाना
घर
की औरतों की आजादी छीन कर
मालिक
बन जाना
धरती
ने दी नदियां वन जल भरे निर्झर
जब
बच्चा बडा हो जाय तो
मां
भी गोद से उतार देती
ये
काल चक्र
कोरोना
नया
युग ले कर आयेगा
विचारों
का मंथन होगा अब
धरती
का अभिषेख होगा
धरती
के पुत्रों के रक्त से
जो
बच जायेंगे
वो
अतीत दुहरायेंगे
फिर
से आयेगा हंसता शैशव धरती पर
फिर
से आयेगा खिलता यौवन धरती पर
नव
युग आयेगा
हर
मनुज निर्मल मन होगा
इंसान
मिलना संभव होगा
ऐसा
नहीं कि फिर से
समस्या
खडी हो
और
सलाह देने वाले भी न हों
कहीं
ऐसा न हो
आंख
,कान,नाक,सब बंद ही रहैं
ये
शब्द नहीं
टूटी
ईंटें हैं
मेरे
स्वर्णिम सपनों के महलों की
जहां
भूख,अनिंन्द्रा,छल ,कपट,धोखा
गरीबी,उलाहने,और
भी जाने कितने दंश
मैं
खुद को ढूंढती हूं
सुबह
होती है शाम होती है
होती
ही रहती है
दमयंती भट्ट,
1 टिप्पणियाँ
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