एहसास
स्मृतियों
के मंदिर
विरह
की आरती
मन निर्भय न
शांत
बस
अपना ही दुख
अपनी
ही पीडा
अधरों
से छूने और
दांत
चुभोने मैं
भले
हुनर एक जैसा हो
एहसास एक नहीं होता
दमयंती भट्ट,
एहसास
स्मृतियों
के मंदिर
विरह
की आरती
मन निर्भय न
शांत
बस
अपना ही दुख
अपनी
ही पीडा
अधरों
से छूने और
दांत
चुभोने मैं
भले
हुनर एक जैसा हो
एहसास एक नहीं होता
दमयंती भट्ट,
1 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर कविता और सुंदर ब्लॉग । आपको बहुत - बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई from My Hindi Poetry Click Here
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