वैसी नहीं मैं***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt


वैसी नहीं मैं

 

सब सोचैं जैसी

वैसी नहीं मैं

समझैं सब मुझको

कैसी मैं

न बोल पाई मैं

न बांध पाई

न छोड पाई

न भुला पाई

प्रेम जगत मैं बंट जाता

श्रंगार पल मैं छंट जाता

भावों की माटी मैं  शब्द उग आते

जब भी डालूं मन पर माटी

हृदय के संवाद

अधरों से बोलूं

आइने की तरह चटक गयी हूं

समेट लेना

शब्द ,शब्द की तरह

मेरे श्याम

मेरे सखा

निष्कलंक,निष्पाप अक्षत

अपनी शरण मैं ले लो  मुझे

ताकि मैं दुविधाओं से मुक्त हो जाऊं

 मैं खुद में

तुमको महसूस करूं

 सरल भाव से।

तेरा स्मरण

कुंदन बन जाये

मैं लिए बैठी हूं

 कुमकुम,रोली ,चंदन

क्यूंकि तेरी करूणा की छाया मैं

पाषाण भी  सजीव बन जाते हैं।

 

दमयंती भट्ट,


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