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"बचपन ढूंढ
रहा हूँ मैं"
गाँव के इन बंजर
खेतों में,
जमींदोज मानव नीड़ों
में,
जीवन ढूंढ रहा हूँ मै,
बचपन ढूंढ रहा हूँ मैं |
खाली दिखते गोठ,गौशाले,
बाट,राह में मकड़ी
जाले,
जहाँ बैठ तरूवर
की छाया,
बचपन अपना पूर्ण
बिताया,
उन गलियन मे,उन कूचन में,
सखियन ढूंढ रहा हूँ मैं,
बचपन ढूंढ रहा हूँ मैं |
कहाँ हैं 'किनगोड़'काले,नीले?
कहाँ 'हिंसर' के
झाड़ सजीले ?
कहाँ गये वे 'बेडू','तिमला'
?
कहाँ खेत सरसों
के पीले ?
अब तो बेरौनक गाँवों में,
मनुज से रहित इन ठाओं में,
मधुवन ढूंढ रहा हूँ मैं,
बचपन ढूंढ रहा हूँ मैं ||
© नरेश चन्द्र उनियाल।
ग्राम - जल्ठा,
डबरालस्यूँ,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड
सर्वथा मौलिक व
स्वरचित।
1 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर कवित सर् from My Hindi Poetry Click Here
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