श्रद्धा***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt


श्रद्धा

 

समय ,पीडा

ईश

और मैं

बस

कागज और पत्थर

ठोकर  और भगवान

कूडा और गीता

मैं भी ऐसी ही

पिता का मान रखने के लिए

जैसे

राम ने सब कुछ खोया

श्रीराम बनने के लिए

 मर्यादा निभाने में भी

जो छूट जाता है

खोजना उसे

पत्थर की अहिल्या मैं

शरीर छू कर भी

बदल जाते हैं

नजरें हृदय तल तक

छू कर आती हैं

खोजना उसे

शबरी की

श्रद्धा में

 

दमयंती भट्ट,

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ