श्रद्धा
समय
,पीडा
ईश
और
मैं
बस
कागज
और पत्थर
ठोकर और भगवान
कूडा
और गीता
मैं
भी ऐसी ही
पिता
का मान रखने के लिए
जैसे
राम
ने सब कुछ खोया
श्रीराम
बनने के लिए
मर्यादा निभाने में भी
जो
छूट जाता है
खोजना
उसे
पत्थर
की अहिल्या मैं
शरीर
छू कर भी
बदल
जाते हैं
नजरें
हृदय तल तक
छू
कर आती हैं
खोजना
उसे
शबरी
की
श्रद्धा
में
दमयंती भट्ट,
1 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर कविताये है आपकी मैंम जी from My Hindi Poetry Click Here
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