सादा जीवन सुखी जीवन

उत्तराखंड की लगूली

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   सादा जीवन सुखी जीवन

 

मैंने सुमन से पूछा, तुम कांटो से घिरे रहते हो !

कष्ट तो होता होगा, फिर भी मुस्कुराते हो ?

सुमन मुस्कराया

" सादगी में जीना, काँटों ने मुझे सिखाया ,!

आजाद हूँ चमन में, जीना मुझे बताया !

काँटों के भवन में पवन आजाद है चमन में

उड़ा ले जाती खुस्बू मेरी सारे जहाँ में

फ़िर मिटा के जहर बिराजता हर हिये में

सुखी हूँ जीवन में न कोई शिकवा है मन में "

सुमन ने मुझे वताया!

 

बृक्ष चंदन का खड़ा, मैने उसे पूछा?

तुम विशधर के लपेटे में, विस से घिरे हो ?

कैसे हो, कैसे घोर बिपदा में जीते हो ?

वह भी मुस्कराते मुझे कहने लगा

 

धरती माता, पिता आकाश है मेरा !

नीर की बहार भानु ताप है मेरा !

सभी देवी देवता, नर ओ नारायण !

मेरी खुस्बू जहाँ में ये पुण्य है मेरा !

आनंद से परिपूर्ण हो जाते

फ़िर बार बार गुण गाते मेरा!

 

लोभ लालच, भोग बिलासिता !

यह धेय जीवन का कभी नहीं होता !

सादगी और ताजगी से रहो और

सुमती के काज कर्म का ताज ही होता!

सुखी जीवन सदा जीवन सुखी होता !

यहाँ जो सादगी से रहकर तप करता !

सुखी जीवन ,सुखद जीवन सदा मुसकराता!

 

लिख्वार-©®-

राजेंद्र प्रसाद कोटनाला

 

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