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सादा जीवन सुखी जीवन
मैंने
सुमन से पूछा, तुम कांटो से घिरे रहते हो !
कष्ट
तो होता होगा, फिर भी मुस्कुराते हो ?
सुमन
मुस्कराया
"
सादगी में जीना, काँटों ने मुझे सिखाया ,!
आजाद
हूँ चमन में, जीना मुझे बताया !
काँटों
के भवन में पवन आजाद है चमन में
उड़ा
ले जाती खुस्बू मेरी सारे जहाँ में
फ़िर
मिटा के जहर बिराजता हर हिये में
सुखी
हूँ जीवन में न कोई शिकवा है मन में "
सुमन
ने मुझे वताया!
बृक्ष
चंदन का खड़ा, मैने उसे पूछा?
तुम
विशधर के लपेटे में, विस से घिरे हो ?
कैसे
हो, कैसे घोर बिपदा में जीते हो ?
वह
भी मुस्कराते मुझे कहने लगा
धरती
माता, पिता आकाश है मेरा !
नीर
की बहार भानु ताप है मेरा !
सभी
देवी देवता, नर ओ नारायण !
मेरी
खुस्बू जहाँ में ये पुण्य है मेरा !
आनंद
से परिपूर्ण हो जाते
फ़िर
बार बार गुण गाते मेरा!
लोभ
लालच, भोग बिलासिता !
यह
धेय जीवन का कभी नहीं होता !
सादगी
और ताजगी से रहो और
सुमती
के काज कर्म का ताज ही होता!
सुखी
जीवन सदा जीवन सुखी होता !
यहाँ
जो सादगी से रहकर तप करता !
सुखी
जीवन ,सुखद जीवन सदा मुसकराता!
✍लिख्वार-©®-✍
राजेंद्र
प्रसाद कोटनाला
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