समय्,वक्त्,काल

उत्तराखंड की लगूली

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हे माँ! झर, झर, झर दे ,ब्रह्म कमल की पियूस रज कण, धरा बड़ी सुहानी, हुई घायल है! मनुज कुकृत्य से?, सर ,सर सर, मिटा दे , विषकण ,घुल गया बसुधा के कण कण,,,,?

समय्,कालखन्ड, प्रचण्ड,? घिरा बेदना में सारी मानव जाति,,! बक्त? ठ हर गया जैसे!, काल हरण में मस्त!?, रोको माँ,! थामो माँ!! समय चक्र अब ,बक्त, काल हराने का ,!वर दो माँ!!! संकट, बिपता पूर्ण मिटाने का

समय्,वक्त्,काल

 

किसने रची दुनिया सारी!

कौन है इसका रचनाकार! ?.

किसने समय्,वक्त,काल का. ,

निश्चित किया नियमानुसार?

 

काल चक्र, निश्चित, लगातार !

कोई घड़ी नहीं, क्या चमत्कार !

सूर्य, चाँद, तारा मंडल ,

चलने का कर्म सदा अलग अलग!

दिन रात, मौसम ऋतु ,मास,

पल भर नहीं अलग !

 

वही क्रम चलता निश्चित, क्रमानुसार ,!

जन्म, मरण, नियति अनुसार.?.

बच्चे, नवयुक, प्रौढ़, जरा, काला अनुसार !

समय का भोग, कर्म मनुज.का अधिकार !?

 

वक्त बदलता है, नहीं ठहरता कभी नहीं !

जीवन का खेला, रुकता कभी नहीं !

वक्त, समय पर कोई ध्यान नहीं देता ?!

जो देता, वह सुख से वंचित नहीं होता !!

 

किसने हाथ में रिमोट है कुदरत का

विग्यान नहीं, फ़िर कौन, किसका

नियति रची प्रजापिता बर्ह्मा जी ने

नहीं हो सकता परिवर्तन पल का इसमें.

 

लिख्वार-©®-

राजेंद्र प्रसाद कोटनाला

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