अँधेरा बहुत हो गया

उत्तराखंड की लगूली

हिन्दी   ।  गढ़वाली ।  कुमाउँनी  ।  गजल  ।  अन्य  ।  कवि  ।  कवयित्री  ।  लेख  ।

 उत्तराखंड देवभूमि  I अनछुई सी तृप्ति  I  ढुंगा - गारा  I  आखर - उत्तराखंड शब्दकोश  I उत्तराखंड I गढ़वाली शब्दों की खोज कुमाउनी शब्द संपदा I उत्तराखंडी यू ट्यूब I  कवितायें I कुमाउनी शब्द संपदा I उत्तराखंडी यू ट्यूब I उत्तराखंड संस्कृतिकवितायें 


अँधेरा बहुत हो गया

 

थोडा उजाला रखो अँधेरा बहुत हो गया

दीप को संभल कर रखो  अँधेरा बहुत हो गया है

 

आये हैं चहुँ  दिशाओं से तूफाँन गुमनामी के

रिश्तों को संभल कर रखो अँधेरा बहुत हो गया  है

 

काले बादलों बीच बैठी बिजली फिर घात लगाए

घोसलों को संभल कर रखो अँधेरा बहुत हो गया  है

 

साँसों को घुटाने वाली  शीतलहर हिमपात है ये

हिय को संभल कर रखो अँधेरा बहुत हो गया  है

 

दावानल में वास्तविकता होगी खाक उनकी

स्वप्न को संभल कर रखो अँधेरा बहुत हो गया  है

 

अभी अपरिचित सी महसूस होंगी साँसे अपनी

हात में हात संभल कर रखो अँधेरा बहुत हो गया  है

 

कस्तूरी के खोज में है  आखेटक अब

मृग को संभल कर रखो अँधेरा बहुत हो गया  है

 

हाट लगा है पुष्पों का यंहा पुष्प ही बिकतें  हैं

कलियों को संभल कर रखो अँधेरा बहुत हो गया  है

 

ह्रदय में परवरिश किये  जख्मों से अभी

एक लालटेन जला कर रखो अँधेरा बहुत हो गया  है

 

बालकृष्ण डी. ध्यानी

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ