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संगत
की रंगत
समंदर
की लहरौ में रमती बिचरती !
हृदय
में सान्सौ में लहरौ को बसाती ,
देखती
दूर से वादलौ में बिजली चमकती ?
जीवन
की किस्ती में झूमने को तरस्ती! ....
ठानली
सागर से गगन चूमने की!? .
सभी
विघ्नवाधा को शक्ति से दूर करने की ,?
चुनौती
कम न थी कठिन राह चलने की?
परवान
चढ़गयी कामना पूर्ण हो ने की! .
वह
बन गयी जलपरी जलसेना की पाइलट!
सागर
बन गया आशियाना उठ गया लहरौ से घुंघट !
समंदर
से उड़ गगन छूती कला दिखाती सरपट !
वह
हिन्द की बहादुर बेटी वन् गयी संसार का मुकुट!
संगत
की रंगत सदा अदा करता उसका हुनर !
ख्वाब
में उड़ता, गहरी नी न्द सोता रॊता सफ़र,?
सपने
वो हैं जिन्दगी के जो सोने नहीं देते कभी ?
मंजिल
मिल जाने तक वो रुकते नहीं कभी भी!
✍लिख्वार-©®-✍
राजेंद्र प्रसाद कोटनाला
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