संगत की रंगत

उत्तराखंड की लगूली

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संगत की रंगत 

 

समंदर की लहरौ में रमती बिचरती !

हृदय में सान्सौ में लहरौ को बसाती ,

देखती दूर से वादलौ में बिजली चमकती ?

जीवन की किस्ती में झूमने को तरस्ती! ....

 

ठानली सागर से गगन चूमने की!? .

सभी विघ्नवाधा को शक्ति से दूर करने की ,?

चुनौती कम न थी कठिन राह चलने की?

परवान चढ़गयी कामना पूर्ण हो ने की! .

वह बन गयी जलपरी जलसेना की पाइलट!

सागर बन गया आशियाना उठ गया लहरौ से घुंघट !

समंदर से उड़ गगन छूती कला दिखाती सरपट !

वह हिन्द की बहादुर बेटी वन् गयी संसार का मुकुट!

 

संगत की रंगत सदा अदा करता उसका हुनर !

ख्वाब में उड़ता, गहरी नी न्द सोता रॊता सफ़र,?

सपने वो हैं जिन्दगी के जो सोने नहीं देते कभी ?

मंजिल मिल जाने तक वो रुकते नहीं कभी भी!

लिख्वार-©®-

राजेंद्र प्रसाद कोटनाला

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