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टिमटिमाते
तारे
आसमान
चांदनी और सुंदर नदी
टिमटिमाते
तारों की क्या पाठशाला होती हैं कंही
देखकर
उनको यूँ निर्भीक रातों में खेलते हुये
अंधकार
से यूँ आंख मिचौलि कर मचलते हुए
रोशन
चांदनी देख रात में खुल जाता कोई
घर
के आँगन रोज खिले जैसे रातरानी शर्माती हुई
चंदामामा
बहुत गप्पी नाहक ही तंग करता है
कभी
पतला तो कभी वो मोटासा हो जाता है
खेलते
खेलते उनमें एक चांदनी रूठ जाती कोई
गालों
को फुलाकर आकाश से सीधे निचे उड़ी लेती सूंई
ऐसे
खुराफ़ाती चांदनी से ईर्ष्या होती है मुझे
दिन
मिले सोने के लिए , संग मुलायम बादलों के झुले
बालकृष्ण
डी. ध्यानी
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