उज्यळु हि उज्यळु

उत्तराखंड की लगूली

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 उज्यळु हि उज्यळु 

उज्यळु हि उज्यळु ह्वै जालु अंध्यरा मा ।

अगर  घड़ेक  सूरज रै जालु अंध्यरा मा ।।

 

सूरज थैं नि गुट्यावा चुचौ दीन द्वफ्री मा ।

कखि घाम फांस नि खै जालु अंध्यरा मा ।।

 

बिनसिरिम बाटु लग्यूं सूरज कब पौंछलो ।

भूक तीस सबि कुछ सै जालु अंध्यरा मा ।।

 

बरखा बादळ बिजुलि अर चौमास लग्यूं ।

सूरज गिल्ली पुंगड़ि बै जालु अंध्यरा मा ।।

 

पाळु ढांडू ह्यूं सबि सूरज दगड़ि हिटणा ।

बगतल फसल पात लै जालु अंध्यरा मा ।।

 

गैणा जोगण जून अंध्यरा का बटोही छीं ।

सूरज भि अपण्यास पै जालु अंध्यरा मा ।।

 

अदनिंदळ्या लोग झणि कब निंद ऐजा ।

कखि सूरज यखुलि रै जालु अंध्यरा मा ।।

 

गीत लगांदा आंद अर गज़ल गांदा जांद ।

सूरज भि उज्यळु थैं गै जालु अंध्यरा मा ।।

 

उज्यळों से भि बिखलाण ह्वै जांद कभि ।

'पयाश'यो पातर मन रै जालु अंध्यरा मा ।।

 

©® पयाश पोखड़ा 

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