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उज्यळु हि उज्यळु
उज्यळु
हि उज्यळु ह्वै जालु अंध्यरा मा ।
अगर घड़ेक सूरज
रै जालु अंध्यरा मा ।।
सूरज
थैं नि गुट्यावा चुचौ दीन द्वफ्री मा ।
कखि
घाम फांस नि खै जालु अंध्यरा मा ।।
बिनसिरिम
बाटु लग्यूं सूरज कब पौंछलो ।
भूक
तीस सबि कुछ सै जालु अंध्यरा मा ।।
बरखा
बादळ बिजुलि अर चौमास लग्यूं ।
सूरज
गिल्ली पुंगड़ि बै जालु अंध्यरा मा ।।
पाळु
ढांडू ह्यूं सबि सूरज दगड़ि हिटणा ।
बगतल
फसल पात लै जालु अंध्यरा मा ।।
गैणा
जोगण जून अंध्यरा का बटोही छीं ।
सूरज
भि अपण्यास पै जालु अंध्यरा मा ।।
अदनिंदळ्या
लोग झणि कब निंद ऐजा ।
कखि
सूरज यखुलि रै जालु अंध्यरा मा ।।
गीत
लगांदा आंद अर गज़ल गांदा जांद ।
सूरज
भि उज्यळु थैं गै जालु अंध्यरा मा ।।
उज्यळों
से भि बिखलाण ह्वै जांद कभि ।
'पयाश'यो
पातर मन रै जालु अंध्यरा मा ।।
©®
पयाश पोखड़ा
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