कितना काम है तुमको***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt


कितना काम है तुमको

 

कितना काम है तुमको

कभी मेरी भी सुन लो

इन आंखों के आधे सपने

तुम देखो

उनींदी रातें आधी तुम ले लो

पूनम का पूरा चांद

आधा तुम ले लो

मां के हिस्से मैं आधी रोटी लिख लो

प्रेम पूरा करो

जिससे करो

आधी रात मैं

मेरे सिरहाने पर

झिलमिल कीडा

तुमको ढूंढे

बिन कुसूर

क्यूं तुम रूठे

बिंदी की चमक,चूडी की खनक

पायल ने बजना छोड दिया

शांझे रात बनती

रातें सुबह,फिर दिन

बिन जल आंगन की तुलसी सूख गयी

दीप भी रूठ गया हवा से

 अनाज उग रहे

गमलों मैं

सारे दिनभर इंतजार करके

थक जाती हैं खिडकियां

खुली खुली

 तृषित कंठ

गोधूलि बेला मैं

सा़ंसों का रूकना

नयनों का बहना

 चुप चाप मन के आंगन

एक अजनबी खयाल

इस रिक्तता को

भर सको तो भरो

तुममैं मुझमें फर्क कैसा

 

दमयंती भट्ट,

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