कितना
काम है तुमको
कितना
काम है तुमको
कभी
मेरी भी सुन लो
इन
आंखों के आधे सपने
तुम
देखो
उनींदी
रातें आधी तुम ले लो
पूनम
का पूरा चांद
आधा
तुम ले लो
मां
के हिस्से मैं आधी रोटी लिख लो
प्रेम
पूरा करो
जिससे
करो
आधी
रात मैं
मेरे
सिरहाने पर
झिलमिल
कीडा
तुमको
ढूंढे
बिन
कुसूर
क्यूं
तुम रूठे
बिंदी
की चमक,चूडी की खनक
पायल
ने बजना छोड दिया
शांझे
रात बनती
रातें
सुबह,फिर दिन
बिन
जल आंगन की तुलसी सूख गयी
दीप
भी रूठ गया हवा से
अनाज उग रहे
गमलों
मैं
सारे
दिनभर इंतजार करके
थक
जाती हैं खिडकियां
खुली
खुली
तृषित कंठ
गोधूलि
बेला मैं
सा़ंसों
का रूकना
नयनों
का बहना
चुप चाप मन के आंगन
एक
अजनबी खयाल
इस
रिक्तता को
भर
सको तो भरो
तुममैं
मुझमें फर्क कैसा
दमयंती भट्ट,
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