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मां
ममता का घर
मां
तुम कुछ पल रुक जाती।
अपनी
डांट डपट कह जाती।।
दुःखी
मन रौद्र भावना में,
स्पर्श
हमें भी मिल जाता।
दर्द
संवारने तेरे आशिश,
वात्सल्य
पन मिल जाता।
सर
में छत्र हथेली की होती।
मां
तुम कुछ पल रुक जाती।।
मनुष्यता
भरा प्यार तेरा,
जीवन
यदि ठहरा होता।
धन्य
धान्य होती बगिया,
पौधा
कुम्लाया नहीं होता।
शुष्क
आंखें भी नहीं घुटती।
मां
तुम कुछ पल रुक जाती।।
जन्म
मृत्यु प्रक्रिया सदैव,
अंतराल
पर अच्छी होती।
भरी
जवानी शोक विपदा,
सूनी
तेरी कोख नहीं होती।
मातृत्व
छांव हौंसला भरती।
मां
तुम कुछ पल रुक जाती।।
मन
दर्पण दिया प्रभु तुम्हें,
साथ
तुम उसे ललकारती।
जीवन
में कस्तूरी बन हमें,
दुखों
में संघर्षशील बनाती।
मध्याह्न
अब साया नहीं देती।
मां
तुम कुछ पल रुक जाती।।
सुनील
सिंधवाल "रोशन"
रूद्रप्रयाग
उत्तराखंड
काव्य
संग्रह "आशाओं के पंख"
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