मुक्तक कुछ मन की अभिव्यक्ति के संग

उत्तराखंड की लगूली

हिन्दी   ।  गढ़वाली ।  कुमाउँनी  ।  गजल  ।  अन्य  ।  कवि  ।  कवयित्री  ।  लेख  ।

 उत्तराखंड देवभूमि  I अनछुई सी तृप्ति  I  ढुंगा - गारा  I  आखर - उत्तराखंड शब्दकोश  I उत्तराखंड I गढ़वाली शब्दों की खोज कुमाउनी शब्द संपदा I उत्तराखंडी यू ट्यूब I  कवितायें I कुमाउनी शब्द संपदा I उत्तराखंडी यू ट्यूब I उत्तराखंड संस्कृतिकवितायें 


मुक्तक कुछ मन की अभिव्यक्ति के संग

 

लग रहा है हवाएं भी अब मतलब की हो गई।

लिखना चाहता लेकिन लेखनी  बेबस हो गई।

कोशिशें बहुत करता हूं दोस्तों मैं तो सदैव से,

पंथ जाति मक्कारों भरी देशहित अब हो गई।

 

जयचंद केवल स्वतंत्रता समय मुहावरा बनता रहा।

भ्रमित फेर में भाईचारा नारा उद्घोषणा करता रहा।

बंटा जब धर्म आधार पर देश में सहिष्णुता का अर्थ।

अब अकर्मण्य पांवभी सर से हर वक्त द्वंद कर रहा।।

 

जो बल कर्म प्रधानता का जीवन में हो सकता।

जो सहचर्यता भावना आत्मीयता में हो सकता।

अल्प और बहु लड़ लें अपनी मानसिकता द्वंद।

बुद्धि विवेक  फैसला ज्ञान पुरोहित कह सकता।

 

सुनील सिंधवाल "रोशन"

रूद्रप्रयाग उत्तराखंड।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ