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ज़िकुड़ा मा खड़्वळा गैरा
ज़िकुड़ा मा खड़्वळा गैरा हुयां छन ।
दरद-पिड़ा थैं सुणदरा बैरा हुयां छन ।।
ब्याळि तक छाया जो अपणा खास ।
आज अचाणचक ऐरा गैरा हुयां छन ।।
सुरम्यळि आंख्यूं की करळि नज़र छे ।
काजोळ आंखा किलै कैरा हुयां छन ।।
आग-अग्यौं धुवां-धुवांरोळ च चौतर्फी ।
स्यूं डांडि-कांठ्यूं का घौ हैरा हुयां छन ।।
कैन मिसाणै अब ज़िकुड़ौ फर बीड़ा ।
अब त आदिम उजड़्यां पैरा हुयां छन ।।
सरबळ्या बण्यां रैंदा छाया जो 'पयाश'।
वो चुपचाप खड़ा कैका डैरा हुयां छन ।।
©® पयाश पोखड़ा
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