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उत्तराखंड देवभूमि I अनछुई सी तृप्ति
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निसफ़िकर निझरक निसतोळ जिंदगि |
सैंती पळि डाळि ह्वै ग्याई अवोळ जिंदगि |
इनै उनै जनै सुणा घ्याळ घपला हुयूं चा |
चुप किळै छे चुची कुछ तू भि बोल जिंदगि ||
छ्यूंति सि छटगि गैन अजकाल रिस्ता भि |
छिल्ला छिलबट सि यूंथैं भि बटोळ जिंदगि ||
अमलट्या मुछ्यळु जन ज़िकुड़ि धुवां धुवां |
रंगणा की थुपड़ि थैं अब नि खरोळ जिंदगि ||
गौं गौं का द्वार मोरु फर संगुळा लग्या छन |
टक लगैकि घार बौड़लि आज भोळ जिंदगि ||
ट्वकै ट्वकरा गाळि रैन भाग मा सर्या उमर |
मौळ्यां घौ बेरि-बेरी फेरि नि ठसोळ जिंदगि ||
सुरम्यळि आंख्यूं मा माया ख्वज्दा रौं सदनि |
कभि मायादार ज़िकुड़ि थैं भि टटोळ जिंदगि ||
ऐना मा बस त्यारु हि छैल दिखेणु चा "पयाश" |
सच ब्वलणा मा अब क्यांकु घंघतोळ जिंदगि ||
@ पयाश पोखड़ा
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