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उत्तराखंड देवभूमि I अनछुई सी तृप्ति
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बचणा छवां न म्वरणा छवां हे जिंदगि
बचणा छवां न म्वरणा छवां हे जिंदगि ।
त्यारु जुरमनो भ्वरणा छवां हे जिंदगि ।।
दिनमान कतगा डैर अर दैसत हुईं चा ।
जितणा छवां न हरणा छवां हे जिंदगि ।।
कन घतासरि लगीं छन गैणि ल्हे जरा ।
देखि-देखि हर्बि डरणा छवां हे जिंदगि ।।
सब झूटा आखर छप्यान अखबार मा ।
ये पैड़ि कै क्य करणा छवां हे जिंदगि ।।
सांस सस्ति हवा मैंगि ह्वैगी अजकाल ।
तैभि सुसगरा भ्वरणा छवां हे जिंदगि ।।
कनै सिस्त तेरि कनै सिसाद लगीं चा ।
द्यखणा छवां ह्यरणा छवां हे जिंदगि ।।
देळि उगड़ि न खुट्टि भैर धैरि 'पयाश' ।
बुरा बगत थैं स्वरणा छवां हे जिंदगि ।।
©® पयाश पोखड़ा
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