चांद
को छन्नी से
चांद
को छन्नी से देखने की नहीं
बल्कि
दूरबीन से देखने वाली सोच
विकसित होनी चाहिए
इतना
मोह है
भारतीय
पत्नियों को
जिसे
चांद बना रहे हैं
वो
इतना समर्पित हो
शादी
से, बच्चे होने तक
घर
से समाज तक साथ निभाने वाला
हर
संकट में साथ निभाने वाला
हाथ
में मेहंदी
नख
सिख सिंगार
नहीं
कम कर सकता पुरुष का दंभ
वो
हर दिन
रहेगी अगर दुल्हन बन कर
पुरुष
अपने ही हाथों से
मिटा
देंगे
उसका
सिंदूर
क्यूंकि
उसे ब्याह कर लाया गया है
सेवा
करने के लिए
मोह
भरी औरतें
प्रेम
पा कर चांद में
प्रेम
खोजती
जिसने
अपने हिस्से का
प्यार
और सम्मान पा लिया
उसे
जरूरत नहीं
चांद
के दीदार की
बड
भागी हैं
भारत
के वासी
इधर
तो जैसे भी हों
पूजे
जाते
उधर
होते तो
नये
नये चांद आ जाते
चांद
बूढ़ा हो गया
संकल्प
विकल्प में
आ
जा धरती पर
कब
तक भागेगा अनंत ,उस तम में
कितने
युग बीत चुके
खुद को दर्पण में देखा क्या चांद बने
मनुजों
ने
सबका
चांद
चांद
ने भेद नहीं किया
धरती
गगन सितारों से
नदी
झरनौं पहाडौं से
चांद
सा दिखना
चांद
होने में अंतर है।
©®
दमयंती
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