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उत्तराखंड देवभूमि I अनछुई सी तृप्ति
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क्य हमरु अर क्य तुमरु
क्य हमरु अर क्य तुमरु चा ।
जिंदगि मौत को हलकरु चा ।।
कन कना गदना समोदरु से ।
आंख्यूंम अटक्यूं बूंद घरु चा ।।
चौदिस घ्याळ घपला च जब ।
तब चुप रैकै भि तलखरु चा ।।
कळग्यसरि जिकुड़ि च वैकी ।
पर सुभौ त भारि करकरु चा ।।
फड़कि हुईं छीं कळ्यजि की ।
तज्जु घौ त भौत चरचरु चा ।।
अपणि माया को बंटदरु भि ।
सर्या जिंदगि को मंगदरु चा ।।
कख अंदि मनखि ध्वार धरम ।
वो मनख्यात को पुछदरु चा ।।
अपणो समझ 'पयाश' तुमथै ।
सदनि तुमरु हि नौ सुमरु चा ।।
©® पयाश पोखड़ा
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