ज़िकुड़ि कल्यज़ि

 

उत्तराखंड की लगूली

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ज़िकुड़ि कल्यज़ि

 

ज़िकुड़ि कल्यज़ि भलिकै निचोड़ि ग्याई वो ।

ल्वै की एक बूंद भि जरा नि छोड़ि ग्याई वो ।।

 

फूल पत्यूं दगडा़ गज़ब की दुसमनै च वैकी ।

डाळि-बोट्यूं बटैकि कुटमणा तोड़ि ग्याई वो ।।

 

तुमरा सौं खैकि सुबेर ल्हेकि भाजिगे छौ जो ।

तुमरा हि सौं खैकि रुम्कां घनै बौड़ि ग्याई वो ।।

 

अजकाला लोगु थैं खुद भि कख लगद बल ।

द्वि भटुळि चार पराज लगैकि दौड़ि ग्याई वो ।।

 

अधमिरा लोग बाग अर अधमिरि सि जिंदगि ।

रीता रिश्तौं दगड़ भ्वर्यां नाता जोड़ि ग्याई वो ।।

 

हिटले जै बाटा भि हिटदी या तेरि मरजी चा ।

तबि त मीथैं यखुलि चौबट्टम छोड़ि ग्याई वो ।।

 

जिंदगि की झूटि सच्चै बस इतगै च "पयाश"।

कखिम माटु कखिम रंगुणु लपोड़ि ग्याई वो ।।

 

©® पयाश पोखड़ा

 

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