जब भी
पग डग मग हों मेरे
जब भी
पग डग मग हों मेरे
थाम
लेना मुझे अपने अधरों की बंसी सा
जब जब
जग ने मुझको ठुकराया
मैंनै
खुद को बढ कर पाया
उधार
की करुणा
खरीदे
रिश्ते
संवेदनहीन
लोग
प्रेम
देह की वर्जनाओं से मुक्त
एक गीत
है
आत्मा
के स्रोत की एक बूंद
जो आतप्त
रूह को
शीतल
करती
देह
तो एक पडाव है
इस पर
ठहरे लोग
नहीं
पा सकते प्रेम
जब प्रेम
स्पर्श करताहै
देह
विलुप्त होती है
जब प्रेम
हो जाता है
तब अतिरिक्त
सब शून्य हो जाता
जब सब
शून्य हो जाता
तब प्रेम
उत्सव मनाता
कोई
नहीं जान सका था
सच को
कैसे
पिया था मीरा ने विष को
वो पुकार
रही थी गिरधर को
मेरे
घुंघरूं के स्वर
समाहित
हों श्याम चरणों मैं
हम दो
नहीं एक हो जायें
सदा
के लिए
जग ने
तेरे मंदिर बनाये
में
तेरे संग घर बसाऊं
विरह
की तो कथायें सुनी थी
जब तक
मेरे भाव पंहुंचते तेरे दर तक
मेरी
प्रार्थना का शव जलाया जा चुका था
दमयंती
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