चूल्हे
बदल गये
चूल्हे
बदल गये
चूल्हों
की आग नहीं बदली
पूछा
नहीं किसी ने
तुम
चाहती क्या हो
तुम
रूठती हो तो
मनाया
किसी ने
सबके
लिए भोजन बनाती
आ
बैठ साथ साथ खा ले
पूछा
ऐसा किसी ने
मां
के श्रंगार दान के आयने मैं
बचपन हंसता है उसका
बरसों
से न रूठी
न
मनाया किसी ने
कुछ
रास्ते जिंदगी का
पाठ
पढाया करते हैं
निकली
है वो जिंदगी के सफर मैं
कुछ
सीख कर लौटेगी
उसकी
जिंदगी चूल्हे के धुंए मैं झुलस गयी
वो
तो चूडियां खरीदना भी बिसर गयी
दमयंती
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