चूल्हे बदल गये***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt

 


चूल्हे बदल गये

 

चूल्हे बदल गये

चूल्हों की आग नहीं बदली

पूछा नहीं किसी ने

तुम चाहती क्या हो

तुम रूठती हो तो

मनाया किसी ने

सबके लिए भोजन बनाती

आ बैठ साथ साथ खा ले

पूछा ऐसा किसी ने

मां के श्रंगार दान के आयने मैं

 बचपन हंसता है उसका

बरसों से न रूठी

न मनाया किसी ने

कुछ रास्ते जिंदगी का

पाठ पढाया करते हैं

निकली है वो जिंदगी के सफर मैं

कुछ सीख कर लौटेगी

उसकी जिंदगी चूल्हे के धुंए मैं झुलस गयी

वो तो चूडियां खरीदना भी बिसर गयी

 

दमयंती

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