इतना
जहर
इतना
जहर तो जहर मैं भी नहीं
जितना
लोग जुबां और मन मैं रखते
कोई
इंसान हो कर भी
पाषाण
है
कहीं पाषाणों मैं भी प्राण हैं
बडा
गुरूर था मुझे खुद पर
टूट
रही अंदर से
बिखर न जाऊं
मेरे ईश
तेरा
दामन पकडा है मजबूती से
आंखों से नींद ही चली गयी
बचा रखे हैं कुछ एहसास
सांसों
की आवन जावन तक
चैन
है तेरे खयालों मैं
सुलगता
है बदन मखमली गद्दों मैं
किसीने
दिन बिताये खयालों मैं
किसी
ने रात बिताई करवटों मैं
मेरे
शब्दों के कई अर्थ होंगे
कपास की ऋतु
गरीब
के आंगन मैं नहीं आती
अमीर
भूख और ठंड से नहीं मरते
दमयंती
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