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अंतरराष्ट्रीय
महिला दिवस पर गढ़वाली कविता
दुधबोळी बाळी
दुधबोळी बाळी हमरी माँ -माँ बोळदी,
कख बटिन ऐ
ह्वळी कैन नी जांणी।
विधाता की देन ह्वै गोदी मा बिठाई,
कख बटिन ऐ ह्वळी कैन नी जांणी।।
जळम ल्यौंदी
सार बेटी बणीं जांदी,
कख बटिन ऐ ह्वळी कैन नी जांणी।
य
नारीशक्ति तैं स्या माँ
कू
नौं द्यौंदी,
नारी
तेरा रुप अनेक पर तू एक ही रौंदी।।
एक घर मा रेक "कै" त रिस्ता बणौंदी,
कख बटिन आई
ह्वळी कैन नी जांणी।
माँ की बेटी बणिं जांदी पापा की लाडली,
भैजी की भुळी अर
बुआ की भतीजी।।
कंजिका बणीं तैं घर -घर
मां पूजी जांदी तू,
माॅं
सरस्वती का मंदिरमा मैडम बणीं जांदी तू।
तीर्थ
स्थल मा
माता कू रूप तेरू दिख्ये जांदू,
भक्तों का मुख मा माँ भवानी कही
जांदी तू।।
दुधबोळी बाळी हमरी माँ -माँ बोळदी,
कख बटिन ऐ
ह्वळी कैन नी जांणी।
विधाता की देन ह्वै गोदी
मा बिठाई,
कख बटिन ऐ
ह्वळी कैन नी जांणी।।
ल्यख्वार---
श्रीमती
अनूपा कुमेड़ी
सलना
नागनाथ पोखरी
उत्तराखंड
चमोली
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