मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक जैल्यु

                                  मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक जैल्यु


 

मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि -२

हैर बण मा बुराँसि का फूल, जब बण आग लगाण होला..

पीता पखों थैं फ्योलिं का फूल, पिन्ग्ला रंग मा रंग्याण होला ..

ळाइयां पैयां ग्वीराल फूलु ना-२, होलि धर्ति सजि देखि ऐइ …

बसन्त रितु म जैयि

मेर डांडि....

 

रन्गील फागुन होल्येरोन कि टोलि, डांडि कांठियों रंग्यणि होलि...

कैक रंग म रंग्युं होलु क्वियि, क्वि मनि-मन म रंग्श्याणि होलि..

किर्मिचि केसरि रंग कि बाढ-२, प्रेम क रंगों मा भीजि ऐइ...

बसन्त रितु म जैयि.

मेर डांडि....

 

बिन्सिरि देय्लिओं मा खिल्दा फूल, राति गों-गों गितेरुं का गीत...

चैता का बोल, ओजियों का ढोल, मेरा रोंतेला मुलुके कि रीत...

मस्त बिग्रैला बैखुं का ठुम्का-२, बांदूं का लस्सका देखि ऐइ....

बसन्त रितु म जैयि...

मेर डंडि....

 

सैणा दमला र चैतै बयार, घस्यरि गीतों मा गुंज्दि डांडि...

खेल्युं मा रंग-मत ग्वेर छोरा, अट्क्दा गोर घम्डियंदि घंडि..

वखि फुन्डे होलु खत्युं मेरु भि बच्पन, -२ ऊक्रि सक्लि त ऊक्रि कि लैयि...

बसन्त रितु म जैयि...

 

मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि -२


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