सीख तो मां ने दी थी***Hindi poetry written by Damayanti Bhatt

 


सीख तो मां ने दी थी

दो घर जोडने

दो पैसे जोडने

ये सीख तो मां ने दी थी

सिर का बोझ जैसे

उतार दिया

डोली में बिठा दिया

खूंटे से बांध दिया

अनजाने पथ हांक दिया

विदा कर दिया बेअकल

कसाई के हाथ

जाति तो पाषाण की भी होती

हर पत्थर नींव पर नहीं टिकते

 न उसने समझा

न समझना चाहा

न उसे दर्द हुआ

न उसे फर्क पडा

बेसबर सी वो नाई

सात जनमों की परछाई

 बस भर पेट निवाला

जिसकी रसोई मैं नहीं बनता

बस खूबियां गिनाना सिखाया

प्यार बताना

तारीफ करना

 ससुराल और पति की

 समाज मैं बढाई करना

सह जाना

अपने मां बाप का अपमान

दो घर की लाज बचाने

की ठेकेदार है वो जो

उसके घर मैं

 न किसी की नजर मैं दर्द

न किसी की नजर मैं फर्क

पराये घर जाना

पराये  घर से आई

तमाश बीन बन कर

खडी रहती

सात जनमों की परछाई

 मां पर लगाती वो

तोहमत  कि

देती कुमन्त्र

खुद की पंचायत

अंधा घरबार

बसेरा ढाई टाट

वो दुनियां के

चांद पर पहुंच जाने की बात करते

जिनको पता नहीं कि

हर घर मिट्टी के चूल्हे होते।

 

©® दमयंती


उत्तराखंडदेवभूमि

काव्यउत्तरखंड

गढ़वाळी  YOU-TUBE 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ