पता नी किलै

उत्तराखंड की लगूली

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पता नी किलै


हैके पिड़ै कि नुमैश,पता नी किलै कर्दा लोग।

भोळ मेरि बारि औलि,यु किलै बिसर्दा लोग। 


जथगा मन हळ्कु हो,परलोक जत्रा सौंगि हुंदि।

फिर भि ये उज्यळा मन,करगट किलै भर्दा लोग। 


खालि हाथ ऐंया यख,जाण भि खालि हाथ च।

फिर भि माटा अर जैजादा,बाना किलै मर्दा लोग। 


मन-वैतरणी जब सुखैलि,तबै पार लगि सकदा।

जाणि-बूजी पापै-नदि,पता नी किलै तर्दा लोग। 


धरम,जात,रंग,रूप,मनखी असलि पछ्याँण नी।

प्रेमो सवादि भोग छोड़ी,झंगर्यौट किलै चर्दा लोग। 


तैकी सृष्टि तैकी दृष्टि,तैस्यै कुछ भि छिपदु नी।

इथगा जाणणा बाद भी,पर्दा किलै कर्दा लोग। 


जीवन मोबैल वैका हाथ,असलि गेम वै त खैल्दु।

अपणि हस्ति बिसरी "नवल",अंगुळि किलै धर्दा लोग। 


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नन्दन राणा "नवल

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