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विषय: घौ
.................................विधा:अतुकांत
घौ
घौ, कतगा दिखौं
कतगा बिंगौं, कतगा सुणौ
घौ
जो गरीबीन स्कूला ड्रेस
थ्यगळा लगाण परे
दगड्यो को हैंसण पर लगीं
या
सुबेर घास ल्याणै बजै से
स्कूल पौछणम अबेर ह्वेत
प्रार्थना मा लैन से अलग हूंणम लगी
पर हां ! यूं घौ पर मल्लम तब लगि
जब फस्ट क्लास नम्बर से पास ह्वे।
कौलेज करै, कोर्स करीं
रोजगारै खुणैं दफ्तर दफ्तर दौडि
खुट्टो छाला कब घौ बणि गैं
पता नि लग।
यू घौ तब सुखीं
जब बुब्बाजी न
अपणा अनुभौ हाथोंन मालिश कै।
ज्वनि ऐ त एक हौरि घौ देगे
जो तब लगीं
जैं दगड़ी रंगिला-पिंगला स्वीणा देखि
कबि हैंसू कबि रोयूँ
कबि लमडू त कबि उठ
जिंदगी बाटो हिटणो सोचि
पर वा अधबटा मा छोड़ि
हैंक बट्वे दगड़ी चलि गै
ये घौ तै मौळण मा भौत टैम लगि।
घौ त तब बि लगीं
जब नौनुन रुमुक दा
टॉफी बाना म्यार खीसाउन्द हत्थ डाली
रीतु खीसा देखि
जन्नी वैको मन उदास ह्वे
प्राण फट फटगरे
अर मेरि जिकुड़ी मा
एक हौरि घौ लगि गे।
असली घौ तब लगद
जब वो चली जांदी
जौन अपणा घौ कबि नि देखि
म्यारा हर घौ कि दवे-दारू करि
मि सारू भरोसो दींणा रै
ऐथर बस ऐथर धक्याणां रै
मि एक मनखी बनाणा रै।
हां एक घौ हौरि बि च
ये मि खुशी क घौ बोलुं
या दुखा क समझ मा नि आणो
यु तब लगीं
जब जैंथे फूल जन्न पालि-पोसि
ज्वा चखुलि सि उड़णि रैन्द छै
जैंका मुखड़ी मा सदनी
हैंसी/खुशी देखणा बाना
मिन रात-दिन एक कैर दे
जैंते देखि मि अपणा
सब्या घौ बिसरी जान्द छौ
वींथे आज मि ढोल-बाजा बजै कै
विदा कन्नौ छौ।
यो घौ हि छिन
जो हमतै अड्याणा रैन्दी
समझाणा रैन्दी, सिखाणा रैन्दी
ऐथर बढ़ाणा रैन्दी, हिक्मत दीणा रैन्दी
अर
हमतै मजबूत बनाणा रैन्दी।।
©.® -
गोविन्दराम पोखरियाल 'साथी'
आभार धाद लोकभाषा अभियान
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